मानव अपराध का जैविक हथियार
कोरोना
युग बेचैन कहर काल है
युद्ध लड़ रहा मानव
शत्रु अदृश्य है।।
दिखता नही मानव ने
कर लिये सारे यत्न
मचा कोहराम है।।
चारो तरफ जैसे
विधाता स्वयं बन गए
काल हैं।।
अस्त्र शात्र सारे
निर्रथक संक्रमण से युद्ध का
शत्र मात्र संस्कृत सांस्कार है।।
मानव बेबस लाचार है
कुछ बोल नही सकता
चेहरे पर मास्क है।।
शस्त्र भी नही हाथ
पल पल करना पड़ता
हाथ साफ है।।
कम से कम दो ग़ज़
दूरी आपस मे दूरी
मानव की संयुक्त शक्ति का
विखराव है।।
घर मे ही बंद कैद
मानव अदृश्य शत्रु की
सयुक्त शक्ति के क्रम
टूटने का कर रहा इन्तज़ार है।।
रिश्तों की रिश्तों की दूरी
मजबूरी तड़फती मानवता
शर्मशार है।।
युग कर रहा प्राश्चित स्वयं
कर्म का या विधाता का
विधि विधान है।।
समझ मे आता नही
मर्ज का मर्म मानवता
खोजतो नित नए इलाज
है।।
भय खौफ का मंजर
चारो तरफ मानव जो
अहंकार मे कहता खुद
को महान हैं।।
प्रकृति प्रदूषण का हाहाकार है
या प्रकृति की मार है चहुँ ओर
निराश का घन घोर अंधकार है।।
विज्ञान चमत्कार में
मानव चमत्कार का
अपराध जैविक हथियार है।।
मानव मानवता का शत्रु स्वयंका
बन चुका काल है।।
शवो से पटे
शमशान अस्पताल है
पहचान नही पा रहा
मानव अपनो को
पड़ा जो कोरोना के काल हैं।।
विश्व युद्ध हैं या बंधु युद्ध हैं
युद्ध लड़ रही मानवता
सारा विश्व बना युद्ध मैदान है।।
शोर शराबा नही रक्तपात नही
गोला तोप बम बारूद नही
ना मिसाइल की मार है।।
चीखती मानवता मृत्यु का
का तांडव नंगा नाच है।।
रिश्तो लाशों का विश्व बना
बाज़ार हैं।।
कृतिम साँसों की दरकार है
मिल जाये तो शायद युद्ध
जितने के आसार है
कृत्रिम जीवन प्रणाली ईश्वर
अवतार है।।
युद्ध के लड़ने का अस्पताल
का विस्तर ढाल है लड़ रहे
जो बीर वो भी किसी मां के
लाल है।।
कितनी मांगे सुनी हो गयी
कितनी माताओं ने खोए
अपने औलाद हैं।।
सुनी सड़के वीरान नगर
गली मोहल्ले लगते रेगिस्तान है।।
लड़ाना हैं यदि इस भय भयंकर से
संयम संकल्प ही हथियार है।।
बनाना होगा हर मानव को
नर में नरेंद्र जो इस युद्ध का
सबल सक्षम धैर्य धीर पराक्रम
पुरुषार्थ नेतृत्व महान है।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
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