*राम बाण🏹 लोग मरते रहे*
लोग मरते रहे हम दिखाते रहे।
एक दूजे कि गलती बताते रहे।।
ये जहर जो मिला है हवा में हमें।
दूर तक बात यूँ ही चलाते रहे।।
मौत मुँह में खड़ी कौन किसका यहाँ।
खूब रिश्ते यहाँ पर भुनाते रहे।।
क्या दलाली चली मौत बिकती रही।
मोल अपना हमें वे बताते रहे।।
रात रोती रही दिन गुजरता गया।
ईद अपनी यहाँ वे मनाते रहे।।
जख्म भरते नहीं जख्म देते रहे।
वे जले में नमक फिर लगाते रहे।।
क्यों हवायें बिकी क्यों दवायें बिकी।
राज इसका सभी से छिपाते रहे।।
मास्क मुँह में लगा हाथ धोते रहो।
रोग कैसे मिटे राम बताते रहे।।
*डॉ रामकुमार चतुर्वेदी*
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