रामकेश एम यादव

मधुशाला!

है   मंजिल   तेरी  वो   नहीं,
जहाँ   तू   जाता  मतवाला।
फाँके  करते  घर   में   बच्चे,
और  तू   जाता   मधुशाला।

एक तरफ  मंहगाई  डायन,
दूसरी    तरफ   मधुशाला।
दो   पाटों  के  बीच   फँसी,
देख    तुम्हीं     ऊपरवाला।

यौवन-रस से भरा  हुआ है,
ये   मेरे  तन   का   प्याला।
अंतर-मन की प्यास बुझा ले,
छोड़ वहाँ की  साकीबाला।

कितना काम है और जरुरी,
नहीं   समझता   मतवाला।
दीवाल फटी है, छत है चूती,
तू   जाता    है    मधुशाला।

पीने का मतलब तू नहीं समझा,
अरे  !   सजन    भोलाभाला।
आओ  घर  में  राम-नाम  की,
मिलके    खोले     मधुशाला।

पीता    है  कलियों   से  भौंरा,
भर-  भर  के  मन का प्याला।
पीते   हैं   वो    पंख-    पखेरू,
कभी   न    जाते    मधुशाला।

पीने   और    पिलाने   में   तू,
जीवन   नरक    बना   डाला।
दुनिया मंगल-चाँद पर पहुँची,
तुझको  दिखता  बस प्याला।

खेत  बेच  या   नथिया  बेच,
या     बेच    तू     खंडाला।
तृप्त आज तक नहीं हुआ है,
कोई       भी      पीनेवाला।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...