अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-गुज़रे हुए लम्हे
विधा-कविता
---------------------
मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका जब करीब से देखा था,
हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था।

गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते,
पर यादों का कारवाँ होंठों पे हँसी मुस्कान ज़रूर ले आता है।

वो ख़ुशनुमा पल कैसे भूल सकता मैं,
उसके मीठे अल्फ़ाज़ और जादूई मुस्कान को आज भी याद करता मैं।

ज़िन्दगी को सही मायने में जीने के लिए ज़िन्दादिल होना बेहद ज़रूरी है,
दो पल की ज़िन्दगी है इसे यादगार बनाना ज़रूरी है।

खुद को कहीं गुम न होने देना,
खुद को अपनेआप में तलाशना भी ज़रूरी है।

*********************************

शीर्षक-असमानता का चश्मा
विधा-कविता
---------------------------
असमानता का चश्मा जब तक अपनी समझ से न हटा पाओगे,
तब तक न अपने समाज को सुंदर और न अपने देश को मेरा भारत महान बना पाओगे।

जहां बेटियों और महिलाओं को समान दर्जा न दिला पाओगे,
वहां कभी सशक्त समाज की कल्पना भी न कर पाओगे।

आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कतई कमतर नहीं फिर भी अगर बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर न दे पाओगे,
तो याद रखना समाज में कभी सही मायने में विकास न कर पाओगे।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...