मुंबई के दरो-दीवार में मेरा दिल धड़कता है,
हर जर्रे - जर्रे को ये दिल सलाम करता है।
करती हैं सजदा इसकी,निशिदिन मेरी सांसें,
बिना रुके,बिना थके,यह रात-दिन चलता है,
सजाते हजारों ख्वाब लोग दूर-दूर से आकर,
हर मेहनतकश का ये खूब आदर करता है।
दौलत,शोहरत से भर जाती है सबकी झोली,
ये मोहब्बत का दीया जला के रखता है।
चुभाता कोई इस फूल के शहर को काँटा,
तब फूल नहीं,ये कांटे से कांटा निकालता है।
यहाँ की व्यवस्था सदा रहती है चाक चौबंद,
बावजूद इसके भी,ये तूफाँ से रोज लड़ता है।
यहाँ की जनता है मानों फ़रिश्ते के जैसी,
उन्हें पलकों की छाँव में छुपाके रखता है।
वफ़ाओं की बस्तियाँ तो बसाता ही है ये,
अपने दिल के तार से उन्हें जोड़के रखता है।
संतों,महात्माओं,शहीदों की है ये पावन भूमि,
रहे चमन महफूज, अहल-ए-दिल रखता है।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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