वर्तमान का सच------
चहु ओर निराशा छाई है
आशा के बादल अब निराशा
की परछाईं है।।
वीरान हो रही बस्तियाँ घर
घर बन गए श्मशान
ईश्वर तेरी सृष्टि का कैसा
यह विधान।।
अंधेरे की चीख है
भटक रहा है इंसान।।
पावन नदियाँ कल कल
कलरव करती पाप नासिनी
ना जाने कैसे बन गयी है शमशान।।
एक दूजे से पूछ रहा है इंसान
क्या छंट पायेगा अंधेरा क्या
अंधेरे की चीख से उबर पायेगा इंसान।।
गलियां और मोहल्ले सुने
नही बचीअब मुस्कान।।
आज मिले जिससे कल
शायद हो उससे मुलाकात।।
दहसत कहर भय का दानव
अदृश्य कर रहा है नंगा नाच
खुद की गलती की सजा भोग रहा इंसान या कुपित हो
गया है भगवान।।
संमझ नही पाता कोई जाए
तो जाये कहाँ करे तो करे
क्या इंसान।।
मातम का मंजर खामोश
हो रहे प्राणि प्राण।।
एक दूजे से पूछ रहा सवाल
इंसान काल कोरोना हैं या
कल्कि से पहले ही यमराज
लिये अवतार।।
रिश्ते से रिश्ता मुहँ छुपाता
शर्मसार हो रहा समाज
जिनकी खातिर जीवन
जल रहे दफन हो रहे लावारिस अनजान।।
बहुत हुआ मौत का
तांडव कहता है पीताम्बर
सुनो दुनियां के भगवान
आंधेरो की चीखों से
मुक्त करो अब युग को
आंधेरो की चीख है कब
तक सुन पाओगे मिट
जाएगा जब तेरी सृष्टि से
तेरा ही विधि विधान।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश
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