सुनीता असीम

दर्द में यार जब मुस्कुराने लगे।
फिर हमें वो हसी भी रुलाने लगे।
****
खो गया दिल कहां से कहां ये मेरा।
जब से नैनों के उनके निशाने लगे।
****
हौंसला साथ देने का जिनका नहीं।
दम हमें आशिकी का दिखाने लगे।
****
नाम से प्यार के जो थे अंजान से।
वो मुहब्बत की रस्में निभाने लगे।
****
देख हमको सनम मुस्करा जब दिए।
प्रेम के गीत हम तब से गाने लगे।
****
सुनीता असीम

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...