"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को मेरा सांध्यकालीन प्रणाम व आज की रचना का विषय।। मेहमान।। का अवलोकन करें... आदरू औ सम्मानु कै खातिनु मान लिए मेहमान जू आवैं।। देव रिषी गुरू काव कही मित्र हितू अरमान ही लावैं।। प्रणाम विनम्र झुकाव लगाव सम्मानु सबै इहय मान रिझावै ।। भाखत चंचल दीनदयाल मेहमानु सही अभिमान ना आवैं।।1।। दुर्योधन ने नहि मानु दयो तबै कुरूक्षेत्र भयंकरू आयौ।। मानु दयो जबु मातु सिया जबु रावन साधु के भेष मा आयौ।। मान दयौ कँह रावनु हनुमत लंक सुवर्नहि खाकु करायौ।। भाखत चंचल सीय के मानु तै अवनीनु निशिचरू साफु बनायौ।।2।। शकुंतला ने जबु मान दयौ तबै पूत भरत जसु गोदिनु पायौ।। मानु दयो कँह हिरण्य कशिपु तबै फारि कै खम्भ त्रिलोकी जु आयौ।। मान कियौ बहु विप्र सुदामा तबै तिसरै मा दुलोकी कहायौ।। भाखत चंचल या अपमानहु पाया हु राज तौ कंस गँवायौ।।3।। मान करौ मेहमाननु कै यहय रीति सदानु ही हिन्द रहाई।। देव गुरून रिसी अरू मित्रनु औरै हितून मेहमानी जे आई।। मधुर जबानु औ शीतलु नीर औ आदरू भाव ना और कहाई।। भाखत चंचल काव कही यहि नातेन देव जू द्वारै जौ आई।।4।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा ,चन्दौकी, अमेठी ,उ.प्र.।। मोबाइल...8853521398,9125519009।। जय हिन्द, जय हिन्दुस्तान, जय जय जय धनवन्तरि।।
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