सुधीर श्रीवास्तव

कर्मफल
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यह विडंबना ही तो है
कि सब कुछ जानते हुए भी
हम अपने कर्मों पर
ध्यान कहाँ देते हैं,
विचार भी तनिक नहीं करते हैं।
बस ! फल की चाहत
सदा रखते हैं,
हमेशा अच्छे की ही चाह रखते हैं।
सच तो यह है कि
हमारे कर्मों का पल पल का
हिसाब रखा जाता है,
जो हमारी समझ में नहीं आता है।
जैसी हमारी कर्मगति है
उसी के अनुरूप कर्मफल
कुछ इस जन्म में मिलता जाता है
तो कुछ अगले जन्म में भी
हमारे साथ जाता है।
हमें अहसास तो होता है
पर अपने कर्मों पर हमारा 
ध्यान ही कब जाता है?
संकेत भी मिलता है
पर इंसान कितना समझता है
या समझना ही नहीं चाहता है
बस उसी का कर्मफल
समयानुसार हमें मिलता जाता है।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
     8115285921
©मौलिक, स्वरचित

पुत्रवधु
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अपेक्षाओं का टोकरा
सिर पर लादकर
हम बाखूशी स्वागत करते हैं
अपनी पुत्रवधु का।
अंजाने लोग,परिवार, परिवेश में
हम उसकी स्थिति को
समझना कब चाहते?
अपने स्वार्थ की गंगा में
बस। क्रीड़ा करते,
वह भी इंसान है
किसी की बहन बेटी है,
भावनाओं के ज्वार के बीच
गड्डमड्ड हो रही उसकी
किसी को फिक्र  तक नहीं।
ये विडंबना नहीं 
तो और क्या है?
चंद पलों में बस जैसे
उसका अस्तित्व ही खो गया,
बेटी थी तब तक सब ठीक था,
वधु क्या बनी
उसका वजूद ही जैसे
दीनहीन हो गया,
परिंदा पंख विहीन हो गया।
● सुधीर श्रीवास्तव
         गोण्डा,उ.प्र.
      8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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