डाॅ० निधि मिश्रा

*जिसने बदला अपना वेश* 

सबसे ज्यादा इस दुनियाँ में, 
देता वह उपदेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

मन में तृष्णा, कुटिल कामना, 
नयनन भरा विद्वेष, 
जिसने बदला अपना वेश। 

साधू सदृश चमक आवरण, 
अन्तस मलिन प्रदेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

धर्म मात्र आडम्बर जिनका, 
समझे सबको मेष, 
जिसने बदला अपना वेश। 

टन्ट- घन्ट ,माया फैला कर, 
करें उर क्षेत्र प्रवेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

ठेंगे पे इनके समाज है, 
स्वारथ रचे कलेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

शर्मसार मानवता इनसे, 
चरित्र छिद्र अशेष, 
जिसने बदला अपना वेश। 

बगुला भगत जपे प्रभु नामा, 
सदा अर्थ अन्वेष, 
जिसने बदला अपना वेश। 

दया ,धरम ,ईमान नहीं, 
पाखण्डी परिवेश। 
जिसने बदला अपना वेश। 

ठग -ठग कर भोली जनता को, 
भरे खजाने शेष, 
जिसने बदला अपना वेश। 

हिय दो धारी, तीक्ष्ण कटारी, 
मुख मिश्री डली विशेष, 
जिसने बदला अपना वेश। 

नीति -अनीति,छद्म छलधारी, 
चतुर चाल ये चेस, 
जिसने बदला अपना वेश। 

श्वेतवसन अपराधी ये ही, 
लाज नहीं है लेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

काशी-काबा, राम-रहीम के,
नाम पे देते ठेस, 
जिसने बदला अपना वेश। 

खेल मौत पर दाँव लगाते, 
खुद को कहें परेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

जातिवाद, अन्याय, अधर्म, 
डसे बने नागेश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

शासन, सत्ता, शक्ति जेब में, 
सकल धर्म नरेश, 
जिसने बदला अपना वेश।

जगो प्यारे देशवासियों, 
संकट में है देश, 
जिसने बदला अपना वेश। 

प्रज्ञा चक्षु प्रस्फुटित हो अब, 
क्यूँ विचलित मन उन्मेष,
जिसने बदला अपना वेश।

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि  मिश्रा ,* 
 *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर ।*

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