ग़ज़ल--
फ़लक के चाँद सितारों से बात होती है
फ़िराक़े-यार में जब-जब हयात रोती है
जो बेवफ़ाई के दामन पे दाग़ हैं उसके
हरेक रात वो अश्कों से उनको धोती है
क़रार दिल का मेरे लूट तो लिया लेकिन
सुकूनो-चैन से वो भी उधर न सोती है
क़सम से अश्क बहाना कभी न तुम फिर से
मेरी नज़र में ये आँसू हरेक मोती
है
इसी लिए है ये मक़बूल अहले-दुनिया में
ख़याल तेरे ही मेरी ग़ज़ल पिरोती है
मुझे वो होश में रहने कभी नहीं देती
नशे में इतना मुझे रोज़ ही डुबोती है
ज़रा सी देर में फिर दिन निकल ही आयेगा
फिज़ूल बातों में क्यों पल हसीन खोती है
सभी चिढ़ाते हैं कह कह के बेवफ़ा उसको
न जाने कैसे वो यह बोझ दिल पे ढोती है
ज़रा सी बात ये *साग़र* समझ नहीं आई
कि उसकी याद मेरी आँख क्यों भिगोती है
🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
22/5/2021
फ़लक-अम्बर, आकाश
फ़िराक़े-यार-मित्र का वियोग
हयात-जीवन
मक़बूल -पिय्र ,मान्य, स्वीकृति ,
अहले-दुनिया में-दुनिया वालों में
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