अर्चना पाठक निरंतर

दिनांक- 26 /05/ 2021 
 *तूफान*
विधा- आल्हा छंद 

कोरोना से त्रस्त सभी थे,
 आया कैसा यह तूफान।
 अस्त सभी है करके जाता ,
रूप भयंकर लेता जान।

 तटनी थरथर काँप रही है,
 तट बंधों का टूटा ढाल।
 जल गर्जन से डोली धरती,
 जनजीवन भी है बेहाल।

 ऊँची उठती लहरें माना,
 तूफानों में गिरता कार ।
देख रहे हैं कुछ सैलानी,
 रोक सके क्या हाहाकार।

 ताप बढ़ा फिर पर्वत पिघले ,
तांडव सहने को मजबूर,
 रूष्ट प्रकृति का ध्यान धरो अब,
 क्रुद्ध भयंकर होगा दूर।

*अर्चना पाठक 'निरंतर'*

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