नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन
शीर्षक"तुम मेरी मौन हो"
28।05।2021।
तुम मेरी मौन हो,ओर क्या हो,
लाशों से तब्दील हो रही जिन्दगी,
कुछ इस कदर की ताण्ड़व हो,
चाहे वैशिक महामारी या तुफ़ान!!
तुम मेरी मौन हो,अफ़सोस हो,
बहुत कम उम्र में जाना,दुखद,
न कोई रही उम्मीद की छोर,
तुफ़ान ने कर दी साफ,मौन हो!!
तुम मेरी अधुरी कहानी हो,
कुछ अरमान था मेरा,शेष,
पर कालचक्र के ग्रासनली में,
दावानल सा हू-हू जलके,राख हो!!
तुम मेरी तबसूम-मौन क्यूँ हो,
क्या दया न आई मुझ पर,बोलो,
कुछ सपना का यूँ टूटना,है दुखद,
पर अब कुहूनी से बह गया नीर हो!!
तुम मेरी और कुछ नहीं,मौन हो,
मरुस्थल में मरीचिका धावन,सम,
अनबुझी पहेली,सहेली ,हो,तुम,
तुम मेरी मौन हो और मौन हो!!
अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏
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