गीतिका
ऐ सनम प्रीत का दान दे दीजिए
प्रेम से ही बड़ा तो यहाँ कुछ नहीं।
प्रेम ही पुष्प है प्रेम ही गंध है
प्रेम के तो बिना भी यहाँ कुछ नहीं
जिंदगी ये खिले प्रीत जो शुभ मिले ,
प्रीत के तो बिना फिर बयाँ कुछ नहीं
प्रीत दे दो हमें भी खड़े द्वार हैं
मांग बैठे वहाँ से जहाँ कुछ नहीं
आप बारिश करो प्रेम की ऐ सनम
बादलों से घिरा आसमाँ कुछ नहीं
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
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