नंदलाल मणि त्रिपाठी पितांबर

कुदरत और कायनात

सागर से उठती लहरे
तूफान तहस नहस करती
युग मानव का अहंकार।।
लाख जतन करता बच
नही पाता निश्चय होता
विनाश संघार ।।
कुदरत का कहर सुनामी
चक्रवात तूफान विज्ञान
करता लाख प्रयास 
ज्ञात  रोक नही पाता तूफान।।
सुनामी का  पता नही
कब आएगी विकट विकराल
विज्ञान चाँद मंगल पर पहुँच
रहा नही रोक पाया अब तक
कहर कुदरत का विज्ञान।।
कुदरत क्या है कुदरत 
ताकत की क्या है क्या है कुदरत की मार अब तक संमझ रहा है
युग मानव विज्ञान।।
दिखता नही समझ नही
पाता युग मानव संक्रमण
संक्रामक कुदरत का कहर 
कोरोना काल।।
टूट गए युग मानव के
अहंकार विखर गयी 
संसकृति विगड़ गए 
चाल अभिमान ।।
रिश्तों से रिश्ते दूर 
मुश्किल साँसों का
संचार ।।
पास नही आता कोई
चाहे प्रियतमा का प्यार
हुश्न इश्क मोहब्बत जज्बा
जुनून समाप्त।।
अरबो की दौलत लाखो
कारिन्दों की फौज बेकार
तड़फ तड़फ कर मरता युग
मानव लावारिस सा पड़ा
शमशान कब्रिस्तान।।
नज़र बंद , कैद कर
दिया घर मे ही युग खोज
रहा अपना अपराध।।
कुदरत का कानून अलग
कुदरत का न्याय फैसला
अलग कुदरत का कहर 
सजा काटती कायनात।।
सड़के सुनी हाट बाजार
बीरान गलियां मोहल्ले भी
लगते जैसे बसते नही यहां
इंसान।।
कोरोना का रोना कुदरत
की नाराजगी का अपना
 अलग अंदाज बेबस
लाचार दे रहे सभी एक
दूजे को अपने अपने नुक्से
का उपचार।।
रिम झिम सावन की फुहार
प्रेम प्यार हुश्न इश्क मोहब्बत
दुनियां में इज़हार कुदरत की
इनायत उपहार।।
सूखा कही बाढ़ प्यासे 
मरता कोई पानी ही पीकर
मरता कोई कभी सर्द की चांदनी
यौवन प्यार मोहब्बत की खुशियों
का दीदार।।
शीत लहर ठंठ मरता इंसान
वासंती वायर नव कोपल
किसलय का मधुमास
जलती ज्वाला सी गर्मी 
मृत्यु काल।।
कुदरत के कायनात में
सौगातों की शान कहर
रहम के दो धार।।
कुदरत की दुनियां में 
कुदरत का प्यार मिले
कुदरत के करिश्मे का
दुनियां को सौगात मिले।।         

कुदरत का कहर ना 
बरपे ,बरसे कुदरद का
प्यार सौगात कुदरत से
प्यार करो बेजा कुदरत
को ना नाराज करो।
समझो कुदरत का विज्ञान
ना होगा कुदरत का कहर
ना होंगे हैरान परेशान।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पितांबर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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