सादर समीक्षार्थ
तस्वीर
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मन की आँखों से देखकर
बड़े प्यार से मैंने उसकी
खूबसूरत सी तस्वीर बनाई,
तस्वीर ऐसी कि मुझे ही नहीं
हर किसी को बहुत भायी।
आश्चर्य मुझे भी हुआ बहुत
ऐसी तस्वीर भला मुझसे
कैसे स्वमेव बन ही पायी,
खैर ! मुझे तो वो ताजमहल से
कहीं कमतर नजर नहीं आई।
पर हाय रे मेरी किस्मत
तूने ये कैसी कलाबाजी खाई,
तस्वीर ने अपने रंग दिखाये
खूबसूरत रंग दम तोड़ने लगे।
खूबसूरत सी तस्वीर भी अब
शनैः शनैः बदरंग होने लगी,
उसके अहसास की खुश्बू भी अब
मेरे मन से थी खोने लगी।
और तो और उसका चेहरा भी
उसकी तरह ही स्याह दिखने लगा,
शायद उसकी असलियत का
पर्दा अब धीरे धीरे उठने लगा।
दोष उसका या तस्वीर का नहीं
दोष मेरी सोच कल्पनाओं का था,
मैं ही बिना सोचे समझे बस
ऊपर ऊपर ही था उड़ने लगा।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित
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