काव्य रंगोली परिवार मंच को नमन🙏
विषय- मेरी दुनिया मेरी मां
वृहस्पतिवार
20-05- 2021
मैं कितनी दूर रहता हूँ अब
*माँ*
को देख भी नहीं पाता हूँ,,
छोटा था तो उसके आंचल का कोना पकड़ कर चला करता था।
आंचल का कोना मुंह में दबाकर नजरें ऊपर करके
मैं, माँ को निहारा करता था।
थकने पर माँ गोदी में उठा लिया करती थी।
पर ,,उंगली आंचल से छूटा नहीं करती थी।
गोदी में उठा कर माँ
मुझको घर के काम निपटाया करती थी ।
मैं उसकी गोद में सोता झूलता रहता था।
थकने पर न जाने कब
मुझे बिस्तर पर सुला
दिया करती थी ।
पर ,,आंचल का कोना छूटने नहीं पाता था।
धर-दबोचा साड़ी का
कोना न जाने कब वो
साड़ी ही छोड़कर रसोई
घर में चली जाती थी।
मैं ऊष्मा के आगोश में आंचल पकड़ कर सोया करता था ।
करवट बदलने पर मुझे ताका झाँका करती थी।
फिर,,थपकी देकर मुझे सुला दिया करती थी
सब को खाना खिला
कर ,खुद भी खा कर
सीने में मुझको दुबका कर
खुद भी हो जाया करती थी।
उसकी छाती की गर्माहट पाकर मैं मुस्कुराया करता था।
मेरे मुस्कुराने पर वो अपने
चुम्बन की बौछार किया करती थी।
न जाने कैसी गुदगुदी
गोदी थी,,
तब वो आंचल छुड़ा
लिया करती।
सुबह सवेरे उठने पर
आंचल कमर में दबोच लेती
गीली नैपी बदला करती थी
तब, मैं उसके गालों को सहलाया करता था।
बिखरे बालों को नोंचा करता था।
एक हाथ से खुद को बचाती
एक हाथ से मेरी नैपी धरती
फिर गुस्से से वो आँख दिखाती।
मेरे रुआँसा होने पर
वो धीरे से अपना
आंचल पकड़ाती
बिल्कुल, धीरे से मेरी नन्ही उंगलियों को अपना
आंचल पकड़ा देती।
मेरी दुनिया बस
इतनी सी होती
उसकी गोदी गुदगुदी
और माँ का आंचल
मेरी दुनिया होती ,
बस!!उसका आंचल ही
मेरी दुनिया होती।
धन्यवाद🙏
रेनू बाला सिंह✍️
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश 201014
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें