ग़ज़ल--
दिखावे की अदाकारी करेगा
किसी की कौन ग़मख़्वारी करेगा
जिसे है ख़ौफ मुखिया का बता वो
हमारी क्या तरफ़दारी करेगा
बराबर बिक रहे ईमान हर सू
भला कब तक तू ख़ुद्दारी करेगा
बचा कर चलते हैं काँटों से दामन
तू इतनी तो समझदारी करेगा
उतारो तुम गुनाहों का लबादा
सफ़र यह और भी भारी करेगा
न घर का घाट का रह पायेगा वो
वतन से जो भी ग़द्दारी करेगा
मिले जब पेट भर रोटी न उसको
बशर वो फिर तो मक्कारी करेगा
लिखा करता हूँ पुरखों के यूँ क़िस्से
कभी कोई अमलदारी करेगा
फ़ना फ़नकार हो जायेगा जिस दिन
ज़माना तब ये गुलबारी करेगा
निभाई तुमने गर *साग़र* न हमसे
जहां में कौन फिर यारी करेगा
22/2/2021
ग़मख़्वारी-सहानभूति ,हमदर्दी
हर सू-हर दिशा ,हर तरफ़
अमलदारी - अपनाना ,इख़्तियार करना ,
बहर मुफाईलुन मुफाईलन फऊलुन
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