डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*कैसे कहूँ* 

दिल में रहते हो हरदम तुम ही सनम, 
दूरियाँ  हैं  बहुत   मै ये कैसे कहूँ ?

साथ  तुम संग चले थे जो दो कदम, 
मिट गये हैं निशाँ उसके कैसे कहूँ ?

पास थे जब कभी तो भी था कब करार? 
बेकरारी खतम अब ये कैसे कहूँ?

सिलसिला ख्वाहिशों का है रुकता नही, 
आरजू थम गयी है ये कैसे कहूँ?

आँख की कोर में अश्क दरिया छिपा, 
जख्म सब भर गये हैं ये कैसे कहूँ?

राख में बाकी चिन्गारियों की चमक, 
शमा बुझ सी गयी है ये कैसे कहूँ?

समझ सको तो इतना ही समझा दो ना ,
इश्क होता है आसाँ ये कैसे कहूँ? 

जिन्दगी की पहेली सुलझती नही, 
ख्वाब हैं' सब मुकम्मल ये कैसे कहूँ?

है बहाने बहुत जीस्त जीने के तो, 
बेसबब जी रही हूँ ये कैसे कहूँ?

उलझनों का सफर कल था और आज भी, 
सूकूँ मंजिल पे होगा ये कैसे कहूँ?

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा*
 *अकबरपुर,*अम्बेडकरनगर* ।

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