ग़ज़ल
पहले तो नज़र दिल को तलबगार करे है
फिर उसको मुहब्बत से गिरफ़्तार करे है
हुस्ने-मतला--
पतझार का मौसम भी वो गुलज़ार करे है
छुप छुप के मेरा रोज़ ही दीदार करे है
है मौजे-तलातुम में उम्मीदों का सफ़ीना
इस पार करे है न वो उस पार करे है
यह सोच सवालों की किताबें नहीं खोलीं
हुशियार है इतनी कि पलटवार करे है
क्या उसका इरादा है समझ में नहीं आता
इकरार करे है न वो इनकार करे है
मुश्किल में हुआ जाता है घर बार चलाना
हर चीज़ यहाँ मँहगी जो सरकार करे है
रह -रह के हिला जाती है वो दिल की इमारत
यह काम भी क्या कोई वफ़ादार करे है
लाँघी नहीं जाती है कभी हमसे वो *साग़र*
तामीर वो लफ़्ज़ों की जो दीवार करे है
🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
मौजे-तलातुम --तूफान की लहरें
सफ़ीना--नाव, कश्ती
25/2/2021
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