हम कहा जा रहें है
ये दुनिया एक बाजार है
और बाजार की एक थीम होती है
यहां वही चीज ज्यादा बिकती है
जिसके साथ कोई न कोई
स्कीम होती है
लुभावनी स्कीमें आती है
जिनसे उपभोक्ता ललचाता है
प्रोडक्ट घर लें जाता है
कौन सा विश्वास है जो
खींचता जाता है निरंतर
विश्व की अवहेलना क्या
अपशकुन क्या
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े है
हम कहा जा रहें है
व्यक्ति विकास के पथ पर
आगे बढ़ रहा है या
विनाश के पथ पर
आगे बढ़ रहा है
यह एक यक्ष प्रश्न है
ये दुनिया मतलब की है
न जाने क्यों लोग,समझ नहीं पा रहे है
इस विज्ञान के युग में
इंसान सुखी कहा है
आधुनिकता की भूल भुलैया में
व्यक्ति घर से निकल नही पा रहा है
जान बूझकर,अनजान बनता है
जैसे वो सदा जिंदा रहेगा
प्रकृति से छेड़छाड़ का
दुष्परिणाम तो,अवश्य ही मिलेगा
अधिकांश व्यक्ति अपना बुढ़ापा
देख ही नहीं पायेगा
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े है
हम कहा जा रहें है
नूतन लाल साहू
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