दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
कितने झटके,कितने सदमे
कितने नाटक,कितने मजमे
हवा भी हो गई जहरीली
कितना धुंआ,कितनी लाशें
आफत की बरसात
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
अब उम्मीद है शेष इक्कीस से
तू इतना नही सताएगा
इतना ही कर दें,बस
इंसान कुछ मुस्कुराएं, कुछ बतिताएं
पर लाक डाउन, न लगने पाएं
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
एक साल से जमीं हुई है कोरोना
विद्यार्थियों की शिक्षा थमीं हुई है
खाईयां सी खुद गई है
हर इंसान के दिलों में
अब उम्मीद है शेष इक्कीस से
कोरोना फिर से नही आयेगा
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
कह रहे है,प्रभु जी के भक्तों ने
मांगी हमने भरपूर दुआं
बेहतर हो कल,लेकिन नही हुआ
दो हजार बीस इक्कीस में
पूरा न हुआ,कोई भी सपना
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
पीड़ा है,फिर भी मुस्कुराएं
मन में,नई आशा की किरणें लाएं
तन मन हो अति सुन्दर
सभी रहें खुशहाल
जन धन की ऐसी बरबादी
और कभी न हो इतनी
अब उम्मीद है शेष इक्कीस से
सोचें कुछ बुनियादें बातें
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
नूतन लाल साहू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें