चन्दन सिंह चाँद

सड़क 

मैं सड़क हूँ , मैं सड़क हूँ 
सबको अपनी मंजिल तक हूँ मैं पहुँचाती
हर किसी का भार मैं सहर्ष उठाती

चलती हैं मुझपर रोज़ अनगिनत गाड़ियाँ
इन गाड़ियों के झरोखों से झाँकते हैं बच्चे प्यारे 
कूदते हैं और मचलते देखकर चलते नज़ारे

कोई यात्री ले रहा नींद में डूबा खर्राटा
और कोई चल पड़ा है आज करने सैर - सपाटा

पहले चलते थे मुझपर पथिक पैदल और चलती थी साइकिलें 
अब इस मोटरकार की बाढ़ से बढ़ी हैं मेरी मुश्किलें

खाँसती हूँ और सँभलती इन काले धुओं के गुबार से 
दिल मेरा छलनी है होता इन मनुजों के व्यवहार से

पता नहीं आज किसे लगेगा धक्का ? कौन होगा घायल ? किसकी होगी दुर्घटना ? 
सोचकर विह्वल मैं रहती और करती हूँ सर्वमंगल प्रार्थना 

नहीं चाहिए मुझे रक्तरंजित आँचल , नहीं देख सकती तड़पते हुए प्राण 
कृपा करो , कृपा करो , कृपा करो हे दयानिधान !

लोग मुझको स्वच्छ बनाएँ ,
मेरे दोनों छोर पर वृक्ष लगाएँ
चलते समय रहें सतर्क और सावधान 
घायल व्यक्ति पर दें सब समुचित ध्यान 
स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।
स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।।

- ©चन्दन सिंह 'चाँद'
   जोधपुर (राजस्थान)

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