सिसकी
कोरोना के दंश से खुद को बचाना है
युद्धस्तर पर नियमो को अपनाना है
अगर कड़ाई से हम पालन करेंगे
तो न चल पाएगी मनमानी उसकी
हर परिवार में गूँजे की किलकारी शहनाई
अपनो को खोने के कारण
न सुनाई पड़ेगी कही से कोई दर्द भरी सिसकी
दहशत के माहौल से निकलना होगा
हार कर न जींवन खोना होगा
लड़ेगा जो जंग जीत होगी उसकी
लबो से फूटेगे गीत न सुनाई देगी सिसकी
अभी तो हर घर मे मातम छाया
किसी ने भाई किसी ने पति किसी ने पिता है गवाया
रोते रोते बन्ध गयी है हिचकी
खामोशियो को तोड़ती सुनाई देती है सिसकी
न घबरा ये दिन बदल टल जायेग
समय घावों पर मलहम लगाएगा
आ जायेगी फिर जींवन गाड़ी पटरी पर
जो लड़खड़ा कर इधर उधर है भटकी
घंटे ,अज़ान,गुरुवाणी देगी सुनाई
करेगा वही रक्षा जिसने दुनियां बनाई
दुखो का अंधेरा छटेगा
खुशियों का सूरज उगेगा
यही तो है मेहरबानी उसकी
मुस्कुराएगी दुनियां सारी
न होंगे आँसू न निकलेगी सिसकी
स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज
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