श्रीकांत त्रिवेदी लखनऊ लघुकथा प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन ब्रेन स्ट्रोक से पैरालाइज्ड!

 डॉ अरोड़ा का नाम दूर दूर तक फैला हुआ था !

शहर के मेयर, 

बहुत बड़े न्यूरो सर्जन!

दवाओं की होल सेल एजेंसियां पूरी कमिशनरी में फैली थी !

  उन्हे सांसदी का टिकट कई पार्टियां देने को तैयार बैठी हैं,

पर वो चाहते हैं की उनके एकमात्र बेटे को टिकट मिले वो भी सत्ताधारी पार्टी से! 

  अचानक देश में कोरोना फैल गया!

दवाओं की मांग बढ़ती ही जा रही थी, डॉ साहब की एजेंसियां लगातार माल सप्लाई कर रही थी, दवा बनाने वाली कंपनियों के बोर्ड के डायरेक्टर जो थे, लोग कहते है बहुत सी जीवन रक्षक दवाएं बनाने की कंपनियां भी हैं उनकी।

  शाम को बेटे को तेज बुखार के साथ कोरोना के सिम्पटम्स उभरे, शहर के सबसे अच्छे हॉस्पिटल में इलाज शुरू हुआ,पर हालत बिगड़ती जा रही थी , डॉ साहब ने दवाएं चेक की तो पता चला कि उन्ही की कंपनियों की दवाएं चल रही हैं, तुरंत दूसरी कंपनी की दवाएं मंगाने के लिए कहा गया हॉस्पिटल से!

    पर शायद देर हो चुकी थी ,कुछ ही देर में बेटे ने दम तोड दिया!

  अगले दिन बेटे के अंतिम संस्कार के बाद डॉ साहब के घर कोरोना के बावजूद हुजूम उमड़ पड़ा! सब सांत्वना दे  रहे थे पर डॉ साहब बदहवास से  बार बार घर के अंदर जाकर पत्नी को चुप करा रहे थे।

    एकाएक अंदर से पत्नी के बिलखने की आवाज में कुछ शब्द सुनाई दे गए,......

" कितना मना किया किया था ये नकली दवाओं का बिजनेस न करो, पर नहीं माने ! अब ये दौलत सिर पर रख नाचो, मेरे बेटे की जान ले ली तुम्हारी दवाओं ने!" 

  कोई कुछ समझता तब तक डॉ साहब की पत्नी को भयानक दिल का दौरा पड़ा और वो भी अपने पुत्र से जा मिलीं।

   दो तीन दिन बाद सभी समाचार पत्रों की हेड लाइन थी....


    प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन ब्रेन स्ट्रोक से पैरालाइज्ड!



श्रीकांत त्रिवेदी लखनऊ

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