*वाणी*
वाणी का ही भेद है,पिक अरु काक समान।
जब तक मुंह ना खोलते, होती ना पहिचान।
शिक्षित की पहचान है,वाणी है आचार ।
जब भी कुछ भी बोलिये, कीजै तनिक विचार।
शब्द घाव तीखे बहुत, लगे विष के तीर।
शब्द नहीं है भूलते,देते निसदिन पीर।
वाणी में बहु बल भरा, लेती हिय को जीत।
सरस नेह से नित भरो ,इक दूजे में प्रीत ।
तीखे वचन न बोलिये ,करत घाव गम्भीर।
क्रोध पाप का मूल है, कुछ क्षण रख ले धीर।
मधु से मीठे शब्द ही, दिलवाते हैं मान।
मीठी वाणी बोलकर, बन जा नेक सुजान।
सन्त कबहु नहि कटु कहै, सन्तहिं मीठे बोल।
पाना हो सम्मान तो, हिय में मिश्री घोल।
वाणी से मत आँकिये, है जन कौन महान।
मनुज स्वार्थी के लिये ,मीठ बोल आसान।
मन में रख कर कुटिलता, बोले मीठे बोल।
मतलब के दिन बीतते, खुल जाती है पोल।
परहित का रख ध्यान नित, बोलो सत्य सुजान।
मीठी वाणी में बसे, स्वयंमेव भगवान।
*स्वरचित-*
*डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा ,*
*अकबरपुर, अम्बेडकरनगर*
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