दहशत
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एक अजीब सी दहशत
हर मन में छाई है,
घरों में कैद हैं फिर भी
सूकून कहाँ भाई है।
बंद दरवाजों पर भी
रह रहकर ध्यान जाता है,
जैसे मौत की दस्तक
रह रहकर आई है।
इतनी उम्र हुई मेरी
कभी डरा तो नहीं था मैं,
आज तो खौफ ऐसा है
कि जैसे जान पर बन आई है।
बता दे तू मुझको इतना जरा
क्या तू दहशत का बड़ा भाई है?
ऐ कोरोना बहुत हो चुका
बंद कर आँख मिचौली हमसे,
हमनें चुपचाप तुझे मान लिया
दहशत तेरा सहोदर भाई है।
बंद कर अब तो डराना मुझको
मेरी तेरी तो न कोई लड़ाई है,
तेरे नाम की दहशत समाई इतनी
लगता है तू मेरी जान का सौदाई है।
अब मान भी जाओ हाथ जोड़ता हूँ मैं
अब तो वापस चला जा मेरे यार
मेरे घर में भी माँ बाप बहन भाई हैं,
यकीन मान ले ऐ मेरे प्यारे कोरोना
मेरे घर में पहले से मेरा घर जमाई है।
● सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र
8115285921
©मौलिक, स्वरचित
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