मां का गर्भ एक प्रयोगशाला
जैसे सागर से निकला
सीपी में पला
आभा से भरपूर
अनेक रूपों में ढला
मोती होती है
वैसी ही मानव जीवन की
कहानी भी होती है
मां का गर्भ
इंसानी प्रयोगशाला है
सम्पूर्ण परिसर को
मां,कहा जाता है
कच्चे माल से
फाइनल प्रोडक्ट तक की
गतिविधियां नौ महीने रहती है
जिंदगी है, हरमुनिया जैसी
जहां उंगलियां दबाती है
सफेद और काली पट्टी
सफेद यानी सुख की
तो काली को दुःख की मान लो
लेकिन याद रखना मेरे मीत
काली पट्टी से भी
निकलता है संगीत
सुख और दुःख दोनों
इंसान के लिए है,इंसानियत के
गतिमान पहिए
सुख से दुःख सोता है
और दुःख से सुख भागे
सुख और दुःख दोनों है
जीवन की, ऊन के दो धागे
रास्ता है मुस्किल
पर नामुमकिन नही
जो आत्मविश्वास के सहारे
आगे बढ़ता है
अपना लक्ष्य पा जाता है
और जो, कुसंगति में पड़ता है
उसका जीवन
अंधकार मय हो जाता है
मां का गर्भ एक प्रयोगशाला है
वीर अभिमन्यु
साक्षात उदाहरण है
नूतन लाल साहू
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