सुधीर श्रीवास्तव

डाक्टर
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धरती पर साक्षात
भगवान का प्रतिनिधि है,
रोतों को हँसाता है
व्याधियों से मुक्ति दिलाता है,
जन जन को
 शारीरिक परेशानियों से 
बचाने का सदा
अथक प्रयास करता है।
दिन रात का भेद किए बिना
सेवा भाव से डटा रहता है।
अपनी निजी सुख सुविधा छोड़
सेवा को तत्पर रहता है,
समय से भोजन, भरपूर नींद
अपनी स्वतंत्रता से वंचित रहता है,
परिवार की शिकायतें सहता है
यार दोस्तों के उलाहने सुनता है
सबको संतुष्ट करने की कोशिश में
खुद से असंतुष्ट रहता है।
चिड़चिड़ाता भी है
पर खुद में समेटे रहता है,
बीमारों के परिजनों के आक्रोश भी
जब तब सहता है,
ईश्वर को यादकर 
अपना चिकित्सकीय धर्म निभाता है,
ऊँच नीच हो जाने पर
धमकियां सहता है
गालियां, अभद्रता बर्दाश्त करता है
मारपीट भी सहन करता है,
फिर भी अपना धर्म ,कर्तव्य समझ
जी जान से जुटा ही रहता है,
अपने चिकित्सकीय ज्ञान और
ईश्वर के भरोसे 
अपना कर्म करता है।
धरती पर ईश्वर का दूसरा रूप है 
जानता है मगर ईश्वर तो नहीं 
यही बात दुनियां को 
समझा ही तो नहीं पाता,
मोहपाश में बंधा परिजन
यही समझना भी नहीं चाहता,
ऐसे में डाक्टर ही 
कोपभाजन बनता,
जान भी अपना जोखिम में डाले
सब कुछ सहता परंतु
कर्तव्य की आवाज सुन
फिर अपने कर्तव्यमार्ग पर 
आगे बढ़ता जाता।
विडंबनाओं का खेल यहां भी है
चंद बेइमान और 
धनपिपासुओं के कारण
समूचा डाक्टर वर्ग
संदेह की नजरों से देखा जाता,
फिर भी डाक्टर के बिना
किसी का काम भी कहाँ चल पाता?
आज कोरोना के दौर में
घर परिवार से दूर रहकर
सुख सुविधा त्याग
जानपर खेलकर भी
दिन रात एक एक मरीज को
जीवन देने की कोशिशों में 
दिन रात लगा है,
जाने कितने डाक्टरों ने
अपना जीवन खो दिया है,
फिर भी साथी डाक्टरों ने
अपने साथी के खोने का ग़म
खुद में जब्त करके भी
अपने कर्तव्य की खातिर 
खुद को झोंक रखा है।
डाक्टर ही तो हैं भगवान नहीं हैं
फिर भी धरती के इस भगवान ने
भगवान का सम्मान बचा रखा है।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा, उ.प्र.
     8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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