मेरी तो जान भी तुझमें बसी है।
कन्हैया तू ही मेरी जिंदगी है।
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हमारा है मेरी सांसों में जबसे।
खुशी मिलती मुझे तो नित नई है।
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नज़र जबसे मिली मेरी हैं तुमसे।
जगी दिल में नई इक रोशनी है।
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बड़े हो बे-मुरव्वत नंदलाला।
पिला नज़रों से दे दी तिश्नगी है।
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यहीं सोचूं तुम्हें अपना बनाकर।
मेरे दिल ने करी क्यूं खुदकुशी है।
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जरा ले लो सुनीता को शरण में।
हे मोहन इल्तिज़ा ये आखिरी है।
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सुनीता असीम
२९/५/२०२१
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