सुनीता असीम

मेरी तो जान भी तुझमें बसी है।
कन्हैया तू ही मेरी जिंदगी है।
***
हमारा है मेरी सांसों में जबसे।
खुशी मिलती मुझे तो नित नई है।
***
नज़र जबसे  मिली मेरी हैं तुमसे।
जगी दिल में नई इक रोशनी है।
***
बड़े हो बे-मुरव्वत नंदलाला।
पिला नज़रों से दे दी तिश्नगी है।
***
यहीं सोचूं तुम्हें अपना बनाकर।
मेरे दिल ने करी क्यूं खुदकुशी है।
***
जरा ले लो सुनीता को शरण में।
हे मोहन इल्तिज़ा ये आखिरी है।
***
सुनीता असीम
२९/५/२०२१

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...