-; एक श्रद्धांजलि -;
क्या लिखूँ मैं आज तुमको,
वक्त का कैसा कहर ।
मौन भी स्तब्ध ठहरा,
हर खुशी लगती ज़हर ।
आज रोता है बहुत मन ,
ढूढती हूँ मैं क्षतिज पर ।
तुम सभी के अमिट स्वर ,
अपनो के बिछड़ने का डर ।
अश्रुओं की शान्त लहरें,
हुई सुप्त सम्वेदना प्रखर ।
काल निष्ठुर क्रूर निर्णय ,
पीर के ज्वारों में खोयी ।
शून्य मन की चेतन डगर,
विकल मन जीवन अनल ।
स्थिर दृगों का ये समर्पण ,
तुमको मेरा शत शत नमन।
यादों में तुम हो हर पहर ,
तुम बिन न कोई है सहर ।
डॉ अर्चना प्रकाश
लखनऊ ।
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