निशा अतुल्य

आज की सृजन अभिव्यक्ति
 माँ की सेवा
24.5.2021

मेरी आस्था,मेरा विश्वास 
तुम्हारे होने से दृढ़ है मेरी माँ।
तुम्हारा पीपल,बरगद पूजना
संरक्षण पर्यावरण सीखा गया ।
देना सूरज को जल नित सवेरे
सर्व-शक्तिमान का सम्मान समझा गया। 
चर-चराचर की निस्वार्थ सेवा करना
जिसके बिना जीवन प्रस्फुटन नहीं
वो जल,वायु,चाँद,तारे,सूरज से,
एक प्यारा रिश्ता बना गया।
चाँद को कभी मामा बताना ,
कभी साजन की लंबी उम्र की कामना 
 उसी चाँद से करना, 
एक रिश्ता समझा गया ।
माँ तेरा चुप रह कर हर कर्म
मुझे जीना सीखा गया ।
भावनाओं को संजो 
जीवन के दुर्गम रास्तों को 
निर्विरोध पार करना 
स्नेह संचित संसार का महत्त्व 
आगे बढ़ना सीखा गया।
माँ तू संपूर्णता का सागर 
अटल निश्छल पर्वत बन
मेरे जीवन का आधार 
तेरा सेवा भाव
जीवन का सार बिना कुछ 
कहें बता गया।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

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