ग़ज़ल ----
देख लेता हूँ तुम्हें ख़्वाब में सोते-सोते
चैन मिलता है शब-ए-हिज्र में रोते-रोते
इक ज़रा भीड़ में चेहरा तो दिखा था उसका
रह गई उससे मुलाकात यूँ होते -होते
इक तिरे ग़म के सिवा और बचा ही क्या है
बच गई आज ये सौगात भी खोते-खोते
प्यार फलने ही नहीं देते बबूलों के शजर
थक गये हम तो यहाँ प्यार को बोते-बोते
बेवफ़ा कह के उसे छेड़े हैंं
दुनिया वाले
मर ही जाये न वो इस बोझ को ढोते-ढोते
इतना दीवाना बनाया है किसी ने मुझको
प्यार की झील में खाता रहा गोते-गोते
ऐसा इल्ज़ामे-तबाही ये लगाया उसने
मुद्दतें हो गईं इस दाग़ को धोते-धोते
आ गया फिर कोई गुलशन में शिकारी शायद
हर तरफ़ दिख रहे आकाश में तोते-तोते
तेरे जैसा ही कोई शख़्स मिला था *साग़र*
बच गये हम तो किसी और के होते-होते
🖊विनय साग़र जायसवाल,बरेली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें