शीर्षक - *कृष्ण सुदामा मिलन*
विधा - *आल्हा छंद*
दीन सुदामा के चरणों में
बैठा देखो यूँ जगपाल।
पाँव पखारे निज अँसुवन से
बाल सखा का पूछे हाल।।1।।
नैन छिपाये उर की चिन्ता
होंठ सजाये इक मुस्कान।
प्रेम तड़ित से विचलित होकर
नीर बहायें रस की खान।।2।।
देख फटी वो पाँव बिवाई
कोमल मन करता चित्कार।
कैसा हूँ मैं मित्र अधम जो
संगी को न दिया आधार।।3।।
काँख छिपी फिर देखी गठरी
छीन लिये उसको करतार।
सूखे चावल खाते जाते
और लुटाते नेह अपार।।4।।
विप्र अचंभित सोच रहा है
कैसे कह दूँ अपना हाल?
बिन बोले पर घर भर डाला
ऐसा नटवर नागर ग्वाल।।5।।
✍🏻©️
सौरभ प्रभात
मुजफ्फरपुर, बिहार
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