ग़ज़ल--
आज़माने की बात करते हो
दिल दुखाने की बात करते हो
हमने देखा है अपनी आँखों से
तुम ज़माने की बात करते हो
सारी दुनिया उदास लगती है
जब भी जाने की बात करते हो
मंज़िलों की सदा पे तुम हमसे
लड़खड़ाने की बात करते हो
मुझको ज़ख़्मों की देके सौगातें
मुस्कुराने की बात करते हो
छेड़ कर साज़े-दिल के तारों को
भूल जाने की बात करते हो
अपने हाथों से फूँक कर तुम अब
आशियाने की बात करते हो
मौसम-ए-पुरबहार में *साग़र*
तुम न आने की बात करते हो
🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
11/4/1983
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