समय महा बलवान
मजदूर लौट घर चला,काम को तरस गया
हाथ में बचा न कुछ,ये मुफ़लिसी का दौर है ।
कब कौन काम आएगा,जब बन्द सब है पड़ा
कौन किस को देगा क्या,ये मुफ़लिसी का दौर है ।
अर्थ रहा न पास का,दाल रोटी आस का
पानी कभी पीया,कभी फ़ाक़ा ही किया
ये मुफ़लिसी का दौर है ।
रौनक लौट आएगी,खिजां एक दिन जाएगी
फूल फूल फिर खिला,जब काम हाथ को मिला ।
हाथ में जो हाथ हो,अपनो का जो साथ हो
ये मुफ़लिसी का दौर भी,बस गुजर ही जायेगा ।।
ये दौर खत्म होगा जरूर,खुशहाल दौर आएगा
पेट भी होंगे भरे,हर चेहरा खिलखिलाएगा ।
हौसलों की दौड़ हो ,हारना नहीं हमें
हरा कर इस दौर को,देश मुस्कुराएगा ।
प्रार्थना प्रभु से ये,कर्म परिभाषा तू गढ़
ये मुफ़लिसी का दौर फिर,पल में गुजर यूँ जाएगा ।
कमज़ोर तू होना नहीं,विश्वास को खोना नहीं
समय महा बलवान है,तेरा हौसला ही तो इसे हराएगा।
ये मुफ़लिसी का दौर है,ये दौर हार जाएगा
बीतता कठिन ये पल,इंसान मुस्कुराएगा ।
तेरा मेरा न कुछ रहा,साथ जब तक सबका रहा
एक अकेला चना न भाड़ फोड़ पाएगा।
ये मुफ़लिसी का दौर है,ये गुजर ही जाएगा
समय महा बलवान है,ये करतब कुछ दिखाएगा ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें