दौड़ेगी ज़िन्दगी!
कोरोना का खौफ अब हट जाएगा,
लॉकडाउन का ये दिन कट जाएगा।
होगा हर जगह खुशनुमा वातावरण,
वायरस का ये बादल छंट जाएगा।
सजेंगे फिर से वो सिनेमाघर,
स्कूल - कॉलेज भी खुल जाएगा।
देखते बनेगी बच्चों की चहलकदमी,
अजायबघर पर्यटकों से भर जाएगा।
कल -कारखानों में दौड़ेगी ज़िन्दगी,
मशीनों का सीना भी तन जाएगा।
मज़दूरों के माथे से फूटेगी किरन,
अंधेरा धरा से ही मिट जाएगा।
खाएँगे गोलगप्पे जुहू बीच जाकर,
सैलानियों का तनाव छंट जाएगा।
काट देती है हवा जब पत्थर को,
जमाना पुराना वो लौट आएगा।
गुलजार होंगे फिर होटल ये दुकानें,
पब्लिक से चौराहा फिर भर जाएगा।
पहनेंगे खेत फिर नई -नई पोशाकें,
हर कोई रिश्तों से लिपट जाएगा।
पा जाएगा इंसान सुकूँ की ज़िन्दगी,
अपनी फिर दुनिया में सिमट जाएगा।
रामकेश एम,यादव(कवि,साहित्यकार), मुंबई
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