अलमारी में रखे पुराने खत
अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज सुधिजनों को बतानी थी।
कुछ लिखते खत में मन बाहर की, मिलने पर बातें होती जुवान थी।।
अब है चैटिंग की सुविधा अनंत, तब 'श्याही' होती भरवानी थी।
अनलिमिटेड डाटा है आज, तब कागज पर कलम चलानी थी।।
खत की बात निराली, लिख कर पत्र-मंजुषा में डाली जाती थी।
कोने में सिमट एकांत देख, मन की कुछ बातें लिखी जाती थी।।
पहले तो दूरियां अक्सर रहती, पढ़ाई नौकरी की बातें पुरानी थी।
जबसे लॉक डाउन, रहना घर- बगल में बैठ चैटिंग फरमानी थी।।
आज अलमारी में रखे पुराने खत पढ़ यादों की बारात सजानी थी।
कपाट खोलते हीं, खतों से 'इत्र अल काबा' की खुशबू आनी थी।।
एक खत मिला प्रियतमा का- उफ! दर्द भरी लम्बी एक कहानी थी।
विरह की अगन बह आँसुओं संग- चिट्ठी में पीड़ा लिखी पुरानी थी।।
गर्मी की तपिश हो या फिर जाड़े की ठिठुरन, बात खतों में घोली थी।
बारिश की पहली फुहार से भड़की तिश्नगी- खत में वो लिखती थी।।
कभी आँसुओं की धार टपकती दिखती- श्याही पसरी जो रहती थी।
कभी लिखती नाम खून से- मन की श्याही अगन से सूखी रहती थी।।
कुछेक पुराने अलमारी में रखे दबे-मुचड़े खत खोज- बातें तो कहनी थी।
मित्र भले छुपालें- हम हैं निश्छल- अनुभव की बातें यथावत् रखनी थी।।
अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज सुधिजनों को बतानी थी।
लिखते खतों में बात मन की कुछ औरों की लिख सारी बतानी थी।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार 845438
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