*राम बाण🏹 बदले-बदले नकाब देखे*
हां जी हां हमने ऐसा साल देखा है।
सड़कों में लगे तंबू तिरपाल देखा है।
शाहीन बाग के लजीज खानों में।
दिल्ली के दंगों के दलाल देखा है।।
मुखौटों में बदले - बदले नकाब देखे।
मजहब के कौमी नामी नवाब देखे।
तार - तार कर रही थी इंसानियत वहां।
नालों में मिलती लाशों का हाल देखा है।।
पैदल जो घर को मजदूर जा रहे थे।
पांव के छाले दर- दर को बता रहे थे।
बच्चों के भी चेहरे मुरझाये देखे।
दर - दर को भटके भूखे बाल देखा है।।
रिश्ते जो पास थे वे भी दूर हो गये।
घरों में रहने कैसे मजबूर हो गये।
दवाओं की दलाली की दरिंदगी में।
नजदीकियों ने दूर से वो काल देखा है।।
यह भोर भी अब विभोर करने लगी है।
वादी भी अब ठगी- ठगी लगने लगी है।
धूप -छाँव की अटखेलियाँ खलने लगी है।
बंद कमरे से सूरज वह लाल देखा है।।
हवायें आज हमसे कुछ पूछ रहीं हैं।
अपनों से ही अपना पता पूछ रही हैं।
हवाओं के सौदे सदनी दलालों के।
बंगलों में रखे हुए वह माल देखा है।।
इनमें तो कुछ चेतना जगाओ राम जी।
मानवता का संचार कराओ राम जी।
अच्छे दिन कैसे भी बुलाओ राम जी।
बुरे दिनों के हमने बुरे हाल देखा है।।
डॉ रामकुमार चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें