लॉकडाउन और मजदूर!
मत घबराओ मजदूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
लॉकडाउन से बंद पड़ा था,
वो रफ़्तार पकड़नेवाला।
थमी -थमी -सी सड़कें थीं,
वो थे उलझन में चाँद-सितारे।
चहल -पहल उठ खड़ी होगी,
टूटेंगे मौन हमारे।
कल तक थमा था नीलाम्बर,
अब वो भी है चलनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
तू है जग का वो शिल्पी,
पर दिखता जुगुनू जैसा।
गागर में सागर भरता,
पर नीड़ न पाता वैसा।
तेरी मेहनत के बूते,
मीनार, महल बननेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
तेरे हिलने से हिलती है,
मानव-जीवन डाली।
है कीमती हीरा तू,
हे ! बगिया के माली।
बिस्तर समेट चुका अब तम,
है मधु -प्रभात आनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
उर में उमड़ रही है जो,
वो विद्युत फिर चमकेगी।
थी पहले जैसी दुनिया,
वैसे फिर गमकेगी।
सृजन-शक्ति परवान चढ़ेगा,
देख रहा ऊपरवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
जन्म-मरण की ये दुनिया,
धूप -छाँव से मत डरना।
मानवता के पथ चलकर,
झरने के जैसे बहना।
तेरे हाथों मरुस्थल में,
कोई नया जहां बसनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
जहां में पतझड़ कहाँ टिका,
पांव वक़्त का कब है रुका?
जीवन -कलरव का प्रवाह,
वो किसके रोके से रुका?
कल-कारखानों का निस्तेज बदन,
वो हाथ तेरे सजनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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