पावन मंच को मेरा कर बद्ध प्रणाम, आज की रचना का प्रसंग धार्मिक है, अवलोकन करें बारहू मा वैशाख जू नीकु माधव मास यही कहि जाई!! हिन्दुअन मा यहु मास पुनीत धरा पै यही भगवान बताई!! सागर काढि़ जौ पायौ अमरित वा तिथि पुण्य एकादशी भाई!! भाखत चंचल अन्तिम तीन सुनीकु रही यहू वेद बताई!! 1!! त्रयोदशी पूनम और चतुर्दशी याको महत्तव बरनि नहि जाई!! ब्राह्ममहूर्त नींद तजय अरू जा स्नानु ना बेरि लगाई!! ध्यान औ जापु जपै त्रिलोकी औ नामु हजारू जपै जेहि भाई!! भाखत चंचल निहचय मुक्ति औ लख चौरासिनु पारहु जाई!! 2!! दान औ ध्यान जे नित्य करै औ तीरथु धामु जा पुण्य कमाई!! याहू कोरोना ना छांड़हु गेहु सबै नदियानु कै ध्यानु लगाई!! अवगुण नाहि जे चित्त धरै परस्वार्थ मा निज नाम लिखाई!! भाखत चंचल काव कही तेहि दीनदयाल जे पार लगाई!! 3!! तन मानुस ई बड़ भागि मिला चौरासी मा नीकु यहै गनि जाई!! झूठ फरेब औ छद्म ना नीकु अवगुण या इतिहास कहाई!! ऊंच विचार औ जीवन सादा रख नित नेति औ पुण्य कमाई!! भाखत चंचल दीनदयाल ई पार करै मा ना बेरि लगाई!! 4!! आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल, ओमनगर सुलतानपुर, उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल 8853521398,9125519009!!
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को मेरा कोटि प्रणाम, आज का विषय ।।विचार।। पर की गयी रचनाओं का अवलोकन करें.... सदभाव विचार पुनीत जगै तौ बाल उठै किलकारी लगाई।। पहिचानु औ जान कै बात नही ऊ तकै तव नैन हिया तव जाई।। दाँतुलि पंक खिलै जस मोतिनु हार विहारु विलोकतु धाई।। भाखत चंचल काव कही इहय मानव कै सदभाव कहाई।।1।। दुरभाव निहारतु नैन विलोकतु काँपि जिया तव पास ना जाई।। नैन विलोकतु नयन उहौ अरू नयननु भाषा ते भाव लगाई।। रूह कँपै कछू भाखि सकै नहि निरखतु सिहरतु काँपतु जाई।। भाखत चंचल रुदन करै अरू हाथु औ पाँव चलावनु जाई।।2।। नयननु भाव स्वरूप निहारतु बागनु पुष्प चुनावनु जाई।। सखियनु संगु रहि सिय मातु अँटे तँह अनुज सहित रघुराई।। चाहत फूल चुनन दोऊ भाई मुला उत नैन ते नयन मिलाई।। भाखत चंचल काव कही उत नयननु भाव सनेहु लगाई।।3।। काँधे धरे तनु हाँथु सरासनु पीठनु अश्व अँटे तँह जाई।। घना विरवानु छिपा हिरना तन प्यासु बुझावनु सरवरू जाई।। ताहि समय सखियानु समेत करै स्नानु अँटी तरुनाई।। भाखत चंचल रिसिवरु नाहि औ राजनु संगु तब नयनु लगाई।।4।। इहाँ तौ सयानी शकुन्तल देखि उहाँ दुष्यन्तु तै नेहु लगाई।। नेह सनेह जगै यतनानु कि रिसिवरु कै तौ ख्यालु ना आई।। प्रीति पुनीत जगी यतनी नु कि नैननु चारि मिलावनु जाई।। भाखत चंचल व्याहु रच्यौ औ मुँदरी निशानु दिखावनु ताँई।।5।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओम नगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी,अमेठी,उ.प्र.।। मोबाइल... 8853521398,9125519009।।
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें