"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को मेरी तरफ से सुबहोसुबह का प्रणाम और आप सभी के आशीर्वाद की कामना करताहुआ दिनानुदिन हमारी आप सभी की प्रेरणा से प्रारम्भ की गयी काव्य रचना ।।धनवन्तरि शतक।। धीरे धीरे पूर्णता को प्राप्त हो रही है ,आगे यह विचार आ रहा है कि रोग और उनकी दवा पर अगली पुस्तक में छन्द माध्यम से ही समाज में प्रसारित करूँ ,मगर यह तभी सम्भव होगा जब हमारे सीनियरान और पाठक इसी तरह प्यार और आशीर्वाद देते रहेगें आज मैने ।।लगन।।शब्द।। को ध्यान में रखकर रचना की है ,यहाँ मैं अपने ग्रेट अपलाइन मि. सूरज कश्यप सर को अन्तरात्मा से हार्दिक धन्यवाद देना चाहूँगाकि काव्य शतक पूरा होने में उनका विशेष उत्साहवर्धन रहा, अवलोकन करें.... रूचि जागे हिया सबु काजु सधै बिनु इच्छा किहे नहि होतु भलाई।। इच्छा जगी जबहीं जियरा तबै आयै पै औसरु हाँथु लगाई।। जागी रही इच्छानु जबै भरि चोंचु ते नीरहु आगि बुझाई।। भाखत चंचल प्रश्न भये तौ रूचिकर उत्तरू आवतु साँई।।1।। इच्छा जगी जियरा कर्मवीरू तौ खोदि पहाड़ तै सरिता बहाई।। इच्छा जगी जियरा मरूभूमि बहा श्रमुशीकरू फसिलु उगाई।। भाखत चंचल नेहु जगी तबै विषु प्यालिनु कंठ लगाई।।2।।। चाह रही तबै झाँसी कै रानी साजि के सैन्य फिरंगी भगाई।। चाह उठी जियरा महराणा तबु जंगल जंगल घूमिह जाई।। चाह उठी तबै घास कै रोटी मुगल सम्राट ते कीन्हि लडा़ई।। भाखत चंचल चाह नही तौ परोसी हु थाली उदरू नहि जाई।।3।। चाह जगी जियरा तौ अपाला जौ दाग सफेद मिटाय धराई।।। चाह उठी जियरा तबै मूरख पाठु औ ध्यान कालीदास कहाई।। चाहनु बातु रही जियरा रत्नाकर हू बाल्मीकि कहाई।। भाखत चंचल चाह सबूत तौ बाबा हू राम चरित्र जू गाई।।4।। गरीबी हटैगी नसैगी बेमारी यही धनवन्तरि वीणा उठाई।। औसरु हाथु गँवावै जोई तौ निरा निर्बुद्धि कहावौं हौं भाई।। अइहँय लक्ष्मी नेटवर्कु किहै जौ चाह उठै तौ नेहू लगाई।। भाखत चंचल आलसि छाँडि रचाओ समूह ओ लाभु कमाई।।5।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर ,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी ,अमेठी .उ.प्र.। प्रोडक्ट प्रचारक व सेल्स इक्जीक्यूटिव डीबी एस ,प्रा. लि. कोलकाता ,भारत।। गाँव देहात की खबर शहर पर भी नजर। द ग्राम टुडे।। दैनिक, साप्ताहिक व मासिक मैग्जीन तथा यू ट्यूव चैनल भी।। एल आई सी आफ इण्डिया।। भारत।। सलाहदाता।। जय जय जय धनवन्तरि,जय हिन्द, जय भारत,वन्दे मातरम् ।।
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें