विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

मुहब्बत जहां से छुपाना है मुश्किल 
सभी को मगर यह बताना है मुश्किल

छुपा है बहुत कुछ निगाहों में उसकी
मगर उससे नज़रें मिलाना है मुश्किल 

ज़ुबां रूबरू काँप जाती है उसके
मुहब्बत को उस पर जताना है मुश्किल

हवाएं बहुत तेज़ हैं नफ़रतों की
चराग़-ए-मुहब्बत जलाना है मुश्किल

ख़िज़ाँओं के खे़मे हैं चारों तरफ़ ही
यहाँ फूल कलियाँ खिलाना है मुश्किल

किराये के घर में गुज़ारेंगे कब तक
नशेमन बहुत ही बनाना है मुश्किल

है मँहगाई हद से ज़ियादा ही *साग़र* 
ग़रीबी में घर का चलाना है मुश्किल

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
29/5/2021
रूबरू-समक्ष
ख़ेमे-डेरे
नशेमन-आवास

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...