शीर्षक-लिहाज़
विधा-विधामुक्त
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थोड़ी सी लिहाज़ रक्खा तो करो,
बूढ़े मां बाप को अपने ज़रा देखा तो करो।
जिन्होंने ख़ुद की ख़ुशियाँ त्याग दी हों तुम्हें कामयाब बनाने में,
उनकी थोड़ी परवाह किया तो करो।
कभी सोचा है माँ बाप के आत्मसमान को कितनी चोट पहुँचती होगी,
जब अपने ही बच्चे उनको दर-दर की ठोकरें खाने पे मजबूर करते हों।
उस वक्त माँ बाप भी ख़ुदा से यही कहते होंगे,
कि ये दिन दिखाने के लिए कभी ऐसी औलाद दिया न करो।
बागबान जैसी फिल्म बनाई न जाती,
गर आज के दौर में ग़ैरत से भी बदतर संतान पाई न जाती।
रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना
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