आज तम्बाखू निषेध दिवस पर
सीख
आव गया आदर गया
गए सुपारी पान
सिगरेट के कस ले रहा
खुश हो नवजवान
गुटखा मुँह में दबा लिया
चढ़ा सुरा का रंग मस्त हो गए भैया जी पी लोटा भर भंग
मना किया घरवालों ने पर खूब की मनमानी
रोगों से तन घिर गया अब याद आ रही नादानी
मुख कैंसर हो जाने से नही खा पाते खाना खांसते रहने के कारण नही हो पाता सोना
रोते हैं पछताते है सबसे यही बताते है
छोड़ो दारू गुटखा पान
नही बढ़ती इससे शान
मुझे देख कर ले लो सीख
नही तो तुम माँगोगे भीख
ज़िन्दगी की है ये सौत
समय से पहले देती मौत
स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज
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