सन्दीप मिश्र सरस

✍️ *सुनो बुद्ध! तुम कह कर जाते*✍️

सुनो बुद्ध! तुम कह कर जाते,
मैं सहर्ष ही करती स्वागत।

मुझ पर घर का बोझ डालकर,
चले जगत का भार उठाने।
मेरी पीड़ा सुन न सके तुम,
जा बैठे उपदेश सुनाने।

मैं यशोधरा भार धरा का,
तुम गौतम से हुए तथागत।1।

वैभव से निर्लिप्त रहे तो
महलों में भी तप सम्भव है।
मन में हो वैराग्य भावना
तो गृहस्थ में जप सम्भव है।

यदि मुझ पर विश्वास जताते,
जोगन बन होती शरणागत।2।

सुनो तथागत! पता लगा है,
नाम तुम्हारा बुद्ध हो गया।
चिंतन से प्रक्षालन करके,
अन्तर्मन भी शुद्ध हो गया।

मुझको भी भिक्षुणी बनाते,
मैं क्यों बैठी रही अनागत।3।

सन्दीप मिश्र सरस
बिसवाँ सीतापुर

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...