-;कृषक ;-
खेत उसका तीर्थ है ,
श्रम साधना उसकी ।
भूमि ही इक सम्पदा ,
रहने को छप्पर आसरा।
धूल माटी का तिलक धरे,
दे रहा भूखे को रोटी ।
घर घर भरते ढेर अन्न के,
वन्दना कृषकों की करे ।
ये विधाता प्रगति उन्नति के,
अन्नदाता कृषक देश के ।
फसलों से ये सोना उगाते,
हर पर्व उत्सव रँगी बनाते ।
धूप वर्षा आंधी पानी ,
रहते कृषक खेत खलिहानी।
घर आँगन खुशियां ये भरे,
देह मन में शक्ति भरते ।
दो बैलों और हल से नाता,
खेत फसलें भाग्य विधाता ।
दुआएँ गगन की साथ इनके,
दैव देव भी तनय इनके ।
जय जय किसानों की सदा,
विजय होश्रम जीवियों की ।
कर्मयोगी न कोई इनसे बड़ा,
इनसे देश का हर दिल जुड़ा ।
ये नहीं तो जीवन नहीं
इनकी हर शर्त स्वीकारो सदा ।
डॉ अर्चना प्रकाश
लखनऊ
मो 9450264638
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