मधु शंखधर स्वतंत्र

*सुप्रभातम्... जय श्री राम..*🙏🚩
*मधु के मधुमय मुक्तक*
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🌹🌹 *अख्यायिका*🌹🌹
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◆ दिखलाती  अख्यायिका, जीवन के सब खेल।
जमींदार की धारणा, दीन हीन का मेल।
सभी बिन्दु की बात हो, अभिव्यक्ति हो मूल,
रुचि आधारित जब पढ़े, मन की दौड़े रेल ।।

◆ मुंशी जी अख्यायिका , रही कृषक ही नाम।
दो बैलों की बात पर, ईदगाह की शाम।
सभी लोकप्रिय हैं यहाँ, पढ़ते देकर ध्यान।
शिक्षाप्रद होती सदा, सद् चरित्र शुभ काम।।

◆ एक लिखो अख्यायिका ,जिसका जीवन नाम।
बच्चों को भाए सतत, पढ़े सुबह से शाम।
पाएँ जीवन सत्य वो, समझें निज उद्देश्य,
यही भावना हो सुखद, लेखक का सुख धाम।।

◆ भाव भरी अख्यायिका, देती है संदेश।
सदा सहेजो संस्कृति, जैसे सुंदर केश।
सुंदर भावों से सजी, रामायण में बात।
अमर बाल्मीकि कर गए, अवध और अवधेश।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*30.05.2021*

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