नूतन लाल साहू

ये कैसा नौतप्पा है

इस साल भी नौतप्पा आ गया
सोचा था,सूरज से आग बरसेगा
सुनी सुनी सी होगी, सड़के और
सूखेगा गला,निकलेगा पसीना
दिखेगा,सूरज का विशाल रूप
पर चल रही है हवा,छा गया है बादल
लगता है,पानी भी बरसेगा
बस,समझने की देरी है
यहां ईश्वर की मर्जी ही चलेगा
अभी भी वक्त है,संभल जाओ
प्रकृति से न करो, छेड़छाड़
भगवान का घर दूर नही है
भगवान मेरे क्रूर नही है
प्रभु जी के नही है,कोई गैर
प्रभु जी के घर, अंधेर नही है
घुरुवा का दिन भी बहुरता है
यदि प्रकृति सेइंसान, प्यार किया तो
आ जावेगा,पुराना दिन
पंछी की भांति,चाहे उड़ लें आकाश में
पग तो,धरती पर ही पड़ेगा
पल की महिमा पल ही जानें
कोई समझ नही पा रहा है
पल में जीवन,पल में मृत्यु
पल पल में परिवर्तन हो रहा है
इस साल भी नौतप्पा आ गया
दे रहा है,अनिश्चितता का संदेश
पल में हंसना,पल में रोना
न जाने आगे और क्या होगा
नैतिकता घट रहा है
बढ़ने लगी है,आबादी
बस समझने की देरी है
यहां ईश्वर की मर्जी ही चलेगा

नूतन लाल साहू

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