मन्शा शुक्ला

अतुकांतिका

नीव की ईट और नारी
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नीव की ईट और नारी में
होती है कितनी समानता
दोनों ही बनी आधार
देती  रहती है सम्बल
परिवार और उँची सुन्दर
ईमारतों ,अट्टालिकाओं को।
देखा जाता है बाहरी स्वरूप
सुन्दरता,बनावट मजबूती 
    मिलती है   सराहना ,प्रशंसा।
कोई नही जानना चाहता
नीवं की उन ईटों के बारे में
किस हाल में है वो कमजोर
टुटती  या  है मजबूत अब भी।

सुन्दर संस्कार युक्त व्यक्तित्व
सुव्यवस्थित  साज सज्जा
व्यवस्था कि होती है  सराहना
समय के अन्तराल के साथ
भूल जाते हैं उस नीवं की ईट को
जो अंधेरो  में  गुमनाम  पडी़
प्रतीक्षा रत  है  आज भी जाननें
 को अपनी पहचान ,असतित्व को।

 पाने को मान सम्मान ,अधिकार
जिसकी है वो वास्तिवक हकदारहै
आवश्यकता  होती है
उचित देखभाल की समय के साथ
नीवं की ईट को भी ताकि बना रहे
सुन्दर ईमारतों का और पीढीयों तक
हस्तांतरित होते रहे संस्कार संस्कृति
पीढ़ी दर पीढ़ी, त्याग समर्पणभाव
की प्रतिमूर्ति होती है नारी वं नीव की ईट, बड़ी समानता होती है दोनों  में।

मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर

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